Tuesday, March 17, 2020

मप्र में फ्लोर टेस्ट पर संग्राम...


सुप्रीम कोर्ट पहुंची कांग्रेस: बंधक विधायकों की गैर मौजूदगी में नहीं हो सकता फ्लोर टेस्ट
-भाजपा की फ्लोर टेस्ट की मांग पर सुप्रीम कोर्ट का राज्यपाल, मुख्यमंत्री और स्पीकर को नोटिस, सुनवाई आज
भोपाल । मप्र में फ्लोर टेस्ट का संग्राम सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। भाजपा के बाद अब कांग्रेस भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गयी है। मध्य प्रदेश में जारी सियासी संकट के बीच कांग्रेस कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। इसमें उसने भाजपा पर कांग्रेस के 16 विधायकों को बंधक बनाए जाने का आरोप लगाया है। पार्टी ने कहा उन विधायकों की मौजदगी में ही विधानसभा में फ्लोर टेस्ट कराया जा सकता है। उधर मंगलवार को भाजपा की फ्लोर टेस्ट की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल, मुख्यमंत्री और स्पीकर को देकर 24 घंटे में जवाब मांगा है। इस मामले में बुधवार को सुनवाई होगी।
मप्र में जारी राजनीति जंग इन दिनों प्रदेश से निकलकर दूसरे राज्यों से होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंची है। भाजपा नेता पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान के बाद मंगलवार को मप्र कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। इसमें उसने भाजपा पर आरोप लगाया है कि उसने कांग्रेस के 16 विधायकों को अपने कब्जे में रखा है। 16 विधायकों की अनुपस्थिति में बहुमत परीक्षण नहीं हो सकता। ये वो सिंधिया समर्थक विधायक हैं जो बेंगलुरू में हैं।
-कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की
कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि वह केंद्र सरकार और कर्नाटक सरकार को आदेश दे कि वो मप्र कांग्रेस पार्टी के पदाधिकारियों को 16 विधायकों से मिलने और बात करने की इजाजत दे जो कांग्रेस पार्टी के सदस्य हैं। इस तरह कांग्रेस के 16 विधायकों को बंधक रखना गैरकानूनी, असंवैधानिक है और संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 और कानून के शासन के खिलाफ है। 15 वीं मध्य प्रदेश विधान सभा के बजट सत्र में भाग लेने के लिए विधायकों को सक्षम किया जाए और अनुमति दी जाए। कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट से निवेदन किया कि वो आदेश दे कि विश्वास मत तभी हो सकता है जब 15 वीं मप्र विधान सभा के सभी निर्वाचित विधायक उपस्थित हों।
-भाजपा की याचिका पर नोटिस
इससे पहले सोमवार को फ्लोर टेस्ट कराने में नाकाम रही भाजपा के नेता शिवराज सिंह चौहान ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। उसमें 48 घंटे के अंदर कमलनाथ सरकार का फ्लोर टेस्ट कराने का निवेदन कोर्ट से किया गया था। शिवराज की याचिका पर मंगलवाल को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने कमलनाथ सरकार, स्पीकर और कांग्रेस पार्टी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। इस मामले पर बुधवार को फिर सुनवाई होगी।
-जब तक विधायक नहीं आएंगे, फ्लोर टेस्ट नहीं: शर्मा
 प्रदेश के कानून मंत्री पीसी शर्मा ने कहा कि बेंगलुरू से जब तक विधायक वापस नहीं आएंगे, फ्लोर टेस्ट नहीं कराए जाएंगे। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगे और उसका पालन करेंगे। उन्होंने कहा कि बेंगलुरु के बंधक विधायक को लेकर भाजपा के नेता झूठ बोल रहे हैं।
-हमने पार्टी छोड़ दी, सिंधिया ही हमारे नेता: बागी विधायक
मंगलवार को मध्यप्रदेश की सियासत में एक नया मोड़ आया जब सिंधिया समर्थक विधायकों ने बेंगलुरू में मीडिया से बात की। मीडिया से बात करते हुए सभी विधायकों ने कहा कि हम कमलनाथ सरकार के कामकाज से खुश नहीं हैं इसलिए हमने कांग्रेस को छोड़ दी है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि हम ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ खड़े हैं, हमें किसी तरह से कोई बंधक नहीं बनाया है। हमें बंधक बनाने को लेकर कांग्रेस अफवाह फैला रही है। सिंधिया के भाजपा में शामिल होने पर सभी बागी विधायकों ने कहा कि हमारे नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में शामिल हो गए हैं। हम भाजपा में शामिल होंगे या नहीं इसका फैसला हम सब मिलकर करेंगे। इमरती देवी ने कहा कि ज्योतिरादित्य सिंधिया हमारे नेता हैं और हमे उनके कहने पर कुंए पर कूद जाएंगे।
- संवैधानिक नियुक्तियों पर रोक लगाने की मांग की
सत्ता संघर्ष अब कानूनी दांव-पेंच में उलझता नजर आ रहा है। भाजपा नेता शिवराज सिंह चौहान, गोपाल भार्गव और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा मंगलवार को राजभवन पहुंचे। नेताओं ने राज्यपाल से मुलाकात कर उन्हें ज्ञापन सौंपा। इसमें उन्होंने कमलनाथ सरकार द्वारा की जा रही संवैधानिक नियुक्तियों पर रोक लगाने की मांग की। चौहान ने कहा-राज्य सरकार अल्पमत में है। इसके बाद भी संवैधानिक पदों पर नियुक्ति कर रही है। ये नियुक्तियां असंवैधानिक हैं। मामले की सुनवाई सु्प्रीम कोर्ट में होने जा रही है। हमने राज्यपाल से अनुरोध किया कि इन नियुक्तियों को रोका जाए। उन्होंने कहा- रातोंरात चीफ सेक्रेटरी बदले जा रहे हैं। चीफ सेक्रेट्री के पद पर दागी अफसर की नियुक्ति की गई। बिजली नियामक आयोग अध्यक्ष के पद पर भी ऐसे ही अधिकारी की नियुक्ति की कोशिश कर रही है।
- ऐसे केस में सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में क्या फैसला दिया?
भाजपा ने याचिका में 1994 के एसआर बोम्मई बनाम भारत सरकार, 2016 के अरुणाचल प्रदेश, 2019 के शिवसेना बनाम भारत सरकार जैसे मामलों का जिक्र किया है। इन मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने 24 घंटे में फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया था। अरुणाचल प्रदेश के मामले में कोर्ट ने कहा था कि अगर राज्यपाल को लगता है कि मुख्यमंत्री बहुमत खो चुके हैं तो वे फ्लोर टेस्ट का निर्देश देने के लिए स्वतंत्र हैं। 2017 में गोवा से जुड़े एक मामले में फ्लोर टेस्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक और टिप्पणी की- 'फ्लोर टेस्ट से सारी शंकाएं दूर हो जाएंगी और इसका जो नतीजा आएगा, उससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया को भी विश्वसनीयता मिल जाएगी।


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